सियासतदानों की खुजली पर कोरोना ने गिरा रखी है बिजली? मंचों पर गला साफ करने वाले नेता हैं बेचारे हताश!
कृष्ण कुमार द्विवेदी
जिले में नौकरशाही का जलवा, राजनैतिक दल दुर्बलता का शिकार? बंद है जिंदाबाद- जिंदाबाद, मुर्दाबाद- मुर्दाबाद की आवाजें! बस सुनाई पड़ रहा है हर तरफ कोरोना – कोरोना
कृष्ण कुमार द्विवेदी
बाराबंकी। भले ही समाज के भिन्न-भिन्न तबका कोरोना महामारी से दुखी हो लेकिन राजनीतिक नेताओं अथवा सियासी दलों के अरमानों पर भी इस महामारी ने जमकर चाबुक चलाएं हैं? काफी दिन हुए ना तो सियासी मंचों पर गले साफ हो पा रहे हैं और ना ही नेताओं की सर्वप्रिय भीड़ ही उन्हें दर्शन दे रही है? कुल मिलाकर कोरोना ने सियासतदानों की सियासी खुजली पर ऐसी बिजली गिराई है कि आने वाले वर्षों तक वे इसे जरूर याद रखेंगे!
देश एवं प्रदेश में राजनीतिक दलों के बड़े नेता कई चैनलों पर आकर अपनी सियासी भड़ास का आदान प्रदान कर लेते हैं। कोरोना महामारी ने ऐसा आतंक मचाया है कि समाज के अधिकांश लोग इससे किसी न किसी प्रकार से दुखी जरूर है। इस महामारी ने सियासत दानों को भी जो भीतरी मार दी है वह एहसास करने लायक है ।काश शायद यह बीमारी ना आई होती तो अब तक बाराबंकी में ही राजनीतिक दलों के बीच इतने तीर चले होते कि उसका लेखा-जोखा भी मुश्किल होता ?कहीं धरना प्रदर्शन होता, तो कहीं पार्टी की मीटिंग होती, यही नहीं कहीं सरकार को अथवा सत्तापक्ष के नेताओं को कैसे घेरा जाए ऐसे तमाम मामले तय होते।
यही नहीं सत्ता पक्ष भी इसका जुगाड़ करता कि कैसे विपक्ष को धार विहीन रखा जाए। जबकि अन्य तमाम छोटे राजनीतिक दलों अथवा कई संगठनों के अगुआ भी कई स्थलो पर अपना राग फैला रहे होते। लेकिन हाय रे कोरोना इसने सब कुछ बंटाधार कर रखा है।
वर्तमान हालात यह है कि राजनीतिक दलों के नेताओं को जनता के बीच में केवल एक चीज ही दिखानी है! वह यह है कि सबसे बड़ा सेवादार कौन। यह ऐसी प्रक्रिया है जो गला साफ करने वाले नेताओं की हसरत पूरी नहीं करती? यह जरूर है कि कुछ जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेताओं को इस से कोई असर नहीं पड़ा है वह अपना काम जनता के बीच में आज भी कर रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि मंचों पर सरकार को कोसना अथवा विपक्ष को गलत बताना या फिर धरना प्रदर्शन में विभाग अथवा अधिकारी को भ्रष्ट बताना ऐसे तमाम दृश्य हैं जो जनता की नजरों से ओझल है! जो दिखाई पड़ता है उसमें यही नजर आता है कि नेता चाहे जिस दल के हो वह बेचारे केवल सेवा के आधार पर ही अपनी राजनैतिक चुल्ल को शांत करते नजर आते हैं?
दूसरी तरफ विभागीय अधिकारी भी इस समय काफी बिजी नजर आते हैं। यहां यह भी है कुछ बिजी हैं कुछ अपने आपको ज्यादा बिजी प्रचारित करते हैं? लेकिन कुछ भी हो यह भी राजनीतिक नेताओं के आने वाले फोनों अथवा सिफारिशों से इस समय आजाद है? ये लोग इन्हें अब वर्तमान में हल्का-फुल्का ही चपेट में ले रहे है? बाराबंकी में तो इधर 2 महीने के मध्य कभी-कभी यह एहसास भी हुआ कि क्या यहां नेता नहीं है? या फिर हैं तो क्या वह तीर्थ यात्रा पर चले गए हैं? अथवा वह अपने घरों में ही लॉक डाउन के नियमों का पालन कर रहे हैं? जिले में कई जनप्रतिनिधि एवं पूर्व जनप्रतिनिधि तथा कई नेता जरूर जरूरतमंदों के बीच राशन सामग्री का वितरण करते नजर आए हैं। लेकिन इनमें से कुछ फोटो खिंचवाने के बाद अन्तर्ध्यान होते आए? तो कुछ आज भी काम करते जनता के बीच दिखाई दे रहे हैं। कोरोना ने राजनीतिक चाय की पार्टियों को भी बंद कर रखा है। पार्टी के कार्यालयों पर प्रमुख पदाधिकारियों के दर्शन भी मुश्किल से हो रहे हैं। हां नेताओं के दरबार में जरूर कुछ खास लोगों के चेहरे दिखाई देते हैं! परंतु जनपद में राजनीतिक गतिविधियां स्थिर नजर आ रही हैं?
जिले में प्रशासनिक नौकरशाही का जलवा बेलगाम अंदाज में आगे बढ़ा है! प्रजातंत्र की राजनीतिक ताकतें इस समय नौकरशाही के आगे दुर्बलता प्राप्त कर चुकी हैं? अर्थात एक ही निश्चित स्थान के दायरे में हैं? कोरोना महामारी ने सभी राजनैतिक गतिविधियों पर ऐसी लगाम लगाई है कि राजनीत के शौकीन कई प्रमुख अलंबरदार आज बेचारे बस सियासी चुप्पी में अपना समय व्यतीत कर रहे हैं! कुछ नेताओं ने जरूर धरना प्रदर्शन किया है लेकिन उसमें भी सामाजिक दूरी का पालन नेताओं को मजबूरी में करना पड़ा? जिससे वह दम नजर नहीं आया जो बिना कोरोना के रहते नजर आता था? अब तो बस हर तरफ एक आवाज आती है कोरोना, कोरोना, कोरोना? जी हां ढाई तीन महीने पहले जो जिले में हर तरफ सुनाई देता था जिंदाबाद -जिंदाबाद, मुर्दाबाद-मुर्दाबाद, फलाने भैया आए हैं, नई रोशनी लाए हैं, फला पार्टी अच्छी, फला पार्टी खराब? ऐसे स्वर थम कर रह गए हैं? मंच पर अपने नेता की बढ़ाई में झूठे कसीदे पढ़ने वाले मंचीय नेता भी कोरोना के द्वारा दी गई छुट्टी पर हैं? जाहिर है कि सियासी खुजली पर कोरोना की गिरी बिजली ने ऐसा कहर बरपाया है कि सर्वदलीय नेता इसे जीवन पर्यंत कभी भुला नहीं पाएंगे?