किस में कितना है दम? अमरीका और सीरिया के बीच ज़बरदस्त जंग शुरु, जो जीता वही सिकन्दर, क्षेत्र में एक नये गठबंधन के उदय से बौखलाया वाशिंग्टन
समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ
सीरिया के विरुद्ध आतंकवादी युद्ध में विजय या सीरिया की सरकार को कमज़ोर करने के अमरीकी अनुमान पर पानी फिर गये और जब अमरीका अपने इस युद्ध में हारता नज़र आ रहा है तो उसे सीरिया सरकार और उसके घटकों की जीत नज़र आने लगी तो उसने आख़िरी हथकंडे के रूप में आर्थिक युद्ध छेड़ने का मन मना लिया ताकि इस प्रकार से अपनी पराजय को छिपा सके और सीरिया को वार्ता की मेज़ पर ला सके।
सेज़ार नामक क़ानून, दमिश्क़ सरकार के विरुद्ध अमरीका के आर्थिक युद्ध का खुला नमूना है और इस बारे में अंतर्राष्ट्रीय टीकाकार पूरी तरह से सहमत हैं कि इस क़ानून से सीरिया की सरकार और जनता और उसके घटकों को निशाना बनाया जा रहा है। टीकाकारों का यह भी मानना है कि लगभग 9 साल से आतंकवाद से जंग करने वाले सीरिया को देश के आधारभूत ढांचों को सुधारने का भी मौक़ा न दिया जाए और उसे हर तरह से परेशान किया जाए।
टीकाकारों का कहना है कि इस क़ानून का एक मक़सद सीरिया को उसकी मुख्य भूमका से दूर करना है क्योंकि क्षेत्र में सीरिया की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
अंतर्राष्ट्रीय विशलेषकों का मानना है कि सीरिया और प्रतिरोध के मोर्चे ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अनेक सफलताएं हासिल की हैं और इसके साथ आर्थिक क्षेत्र में भी उसने महत्वपूर्ण कार्यवाहियां अंजाम दी हैं और इसी मेहनत और परिश्रम का परिणाम सीरिया, ईरान, रूस, चीन, लेबनान और इराक़ के बीच मज़बूत आर्थिक संबंधों के रूप में सामने आया है।
टीकाकारों का कहना है कि सीरिया और उसके घटकों पर दबाव डालने का अमरीका का मुख्य लक्ष्य, इस्राईल के कुछ हितों को पूरा करना है। वाशिंग्टन इस दबाव से यह संदेश देना चाहता है कि सीरिया में कोई भी ऐसी चीज़ नहीं होनी चाहिए जो क्षेत्र में उसके हितों और इस्राईल के हितों को नुक़सान पहुंचाए। या दूसरे शब्दों में यूं कहा जाए कि अमरीका चाहता है कि सीरिया में जो कुछ भी हो वह अमरीका और इस्राईल के हित में हो, सीरिया वार्ता की मेज़ पर आए ताकि गोलान हाट्स और ट्रम्प की सेन्चुरी डील योजना के बारे में बात करे। दूसरी ओर सीरिया पर इस्राईल के निरंतर हमले ने यह साबित कर दिया कि हर प्रकार की सांठगांठ में इस्राईल को भी शामिल होना है।
कुछ टीकाकारों का यह भी मानना है कि वाशिंग्टन, आतंकवाद के सहारे सीरिया में व्यवस्था को बदलने में बुरी तरह नाकाम हो गया है इसीलिए उसने सेज़ार क़ानून लागू करके सीरिया की सरकार और राष्ट्र पर दबाव डालना शुरु कर दिया है ताकि सीरिया की जनता, अपनी सरकार पर अमरीका से वार्ता करने और उसकी शर्त मानने के लिए दबाव डाल सकें।
बात यहीं पर ख़त्म नहीं होती कुछ टीकाकारों का यह भी ख़याल है कि सेज़ार क़ानून, सरकारी संस्थाओं को प्रभावित नहीं करेगा बल्कि सीरिया की जनता और इस देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा। कुछ अन्य का यह भी मानना है कि यह दबाव और घेराव कोई ताज़ा नहीं है क्योंकि सीरिया पिछले 9 साल से दबाव और परिवेष्टन का सामना कर रहा है।
स्वतंत्र टीकाकार सीरिया के विरुद्ध अमरीका के इस क़ानून को इस देश के विरुद्ध अमरीका के सैन्य व आर्थिक आतंकवाद का चरम बता रहे हैं जो युद्ध के बुलबुलों की तरह धीरे धीरे बैठ जाएगा और सीरियाय की जनता एक बार फिर अमरीका के आर्थिक आतंकवाद पर जीत दर्ज करेगी।
टीकाकारों का यह मानना है कि सीरिया और उसके घटकों के बीच मज़बूत आर्थिक संबंध पाए जाते हैं और आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के आरंभ में ही सीरिया ने ईरान, रूस और चीन की ओर क़दम बढ़ा दिया था और इस परिवेष्टन के दौरान वह कई क्षेत्रों में अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है और आत्मनिर्भर बनकर उभर आया है।
अब ऐसा महसूस नहीं होता कि अमरीका का यह काला क़ानून सीरिया की सरकार और जनता को अमरीकी शर्तों के आगे झुकने पर मजबूर कर देगा। 9 साल के भीषण युद्ध ने सीरिया की जनता और सरकार को सीसा पिलाई दीवार की तरह मज़बूत बना दिया है और इसी से अमरीका और उसके क्षेत्रीय घटक विशेषकर इस्राईल बुरी तरह बौखलाए हुए हैं।