मोमिन वही है जो मोहम्मद के साथ साथ अली की भी इत्तेबा करे -मौ. नसीर आज़मी

रसूल की आवाज पर लब्बैक कहने वालों को मिलती है जिन्दगी

मुमकिन नहीं है शाह का ग़म हो सके रक़म,सरवर तख़य्युलात की चादर समेट ले – सरवर कर्बलाई

बाराबंकी ।मोमिन वही है जो मोहम्मद के साथ साथ अली की भी इत्तेबा करे । यह बात मौलाना ग़ुलाम अस्करी हाल में मरहूम आलिम हुसैन इब्ने अजबुल हुसैन की मजलिसे तरहीम को ख़िताब करते हुए आली जनाब मौलाना नसीर आज़मी साहब क़िबला ने कही ।उनहोने यह भी कहा कि रसूल की आवाज पर लब्बैक कहने वालों को जिन्दगी मिलती है। कामयाबी चाहिए तो रूहे ईमान के के साथ अमले सालेह करो ।इन्ना लिल्लाह को मौत का नारा न बनाएं ज़िन्दगी का नारा बनाएं ।पहले मौत को समझें ज़िंदगी ख़ुदबख़ुद समझ में आ जाएगी।आख़िर मे मसायब पढ़े जिसे सुनकर मोमनीन रोने लगे।मज लिस से पहले डा.रज़ा मौरानवी नेअपने मखसूस अंदाज़ में पढ़ा – हमारा सर जो सिना की अनी से जोड़ा गया,कसम ख़ुदा की वो लम्हा सदी से जोड़ा गया।कशिश संडीलवी ने पढ़ा – सर अपना तेग़े जफ़ा से कटा दिया उसने, मगर ज़माने को सजदा सिखा दिया उसने।अजमल किन्तूरी ने भी अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – ख़ुदा ने चाहा कि लौहो कलम की ख़िलकत हो , तो सबसे पहले हुई इब्तिदाए नुक़्ता ए बा ।ज़मीं से बढ़के मैं वाकिफ़ हूँ आसमानों से ,येबात किसने कही है सिवाय नुक़्ता ए बा । सरवर करबलाई नेअपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – मुमकिन नहीं है शाह का ग़म हो सके रक़म, सरवर तख़य्युलात की चादर समेट ले ।इसके अलावा मो.इमाम, कामयाब व बच्चों ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया ।मजलिस का आग़ाज तिलावते कलामे पाक से हुआ ।बानिये मजलिस ने सभी का शुकरिया अदा किया।

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