दीनदयाल उपाध्याय व डा. राम मनोहर लोहिया महासंघ के थे पक्षधर: राजनाथ शर्मा गोष्ठी में बोले समाजवादी चिंतक राजनाथ शर्मा

शमीम अंसारी बाराबंकी: एसएम न्यूज24टाइम्स

बाराबंकी। वृहस्पतिवार को गांधी जयंती समारोह ट्रस्ट द्वारा आयोजित अगस्त क्रांति दिवस सप्ताह जो 9 अगस्त से 15 अगस्त तक मनाया जा रहा है। इसके विभिन्न कार्यक्रमों में आज भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश का महासंघ बनाओ विषय पर गोष्ठी का आयोजन गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा की अध्यक्षता में हुआ। गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए राजनाथ शर्मा ने कहा कि सन् 1964 में देश के दो बड़े नेता स्व. दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जन संघ एवं समाजवादी विचारक स्व. डा. राम मनोहर लोहिया जो शुरु से ही महासंघ के पक्षधर थे। उन्होने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करके भारत-पाकिस्तान का महासंघ बनाओ सम्मेलनों के माध्यम से जन जागरण का काम शुरु किया। लखनऊ में सन् 1965 में स्व. राजनारायन जी के दारुलसफा स्थित कमरे में एक गोष्ठी का आयोजन हुआ। सन् 1965 से निरन्तर यह कार्यक्रम राजनाथ शर्मा इस कार्य को सम्मेलनों के माध्यम से लखनऊ, दिल्ली और देश के अन्य शहरों में करके जन जागरण का कार्य कर रहे हैं। भारत और पाकिस्तान के महासंघ के बाद बंग्लादेश जब एक राष्ट्र के रुप में आया तब भारत-पाकिस्तान और बंग्लादेश महासंघ बनाओं का आयोजन प्रारम्भ हुआ। आज दुनिया में अमेरिका, चीन और अन्य देश युद्ध का माहौल पैदा करते हैं और फिर अपने युद्ध सामग्री को आर्थिक दृष्टि से कमजोर राष्ट्रों के साथ सौदा करके उनकी अर्थ व्यवस्था खराब कर रहे हैं अगर भारत और पाकिस्तान और बंग्लादेश के शासक मिलकर एक साथ एक महासंघ का निर्माण करें तो वह दुनिया की एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। लेकिन सरकारें इस दिशा में उस तरह कार्य नही कर रही है जिस तरह से यूरोप के लोगों ने यूरोपी महासंघ की स्थापना की। दोनो जर्मनी एक होने पर लोगों का मानना है कि हिन्दुस्तान-पाकिस्तान-बंग्लादेश का महासंघ बन सकता है। लेकिन यहां बिल्कुल दूसरी स्थिति है यहां नस्ल एक है लेकिन धर्म अलग अलग हैं। आज की गोष्ठी अपनी यह राय व्यक्त करती है कि सभी धर्मों के एंव जातियों के लोगों को आपसी मतभेद को समाप्त करके गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, दवा और इलाज के अभाव में जो संकट मानव जाति के सामने उत्पन्न हो रहे हैं। और इनके आपसी तनाव और युद्ध का माहौल बनने से जो आर्थिक संकट पैदा हो रहा है वह महासंघ से ही दूर हो सकता है। इसलिये महासंघ की प्रबल आवश्यकता है। सभी धर्मों एवं राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यकार तथा विद्यवानों का यह प्रयास होना चाहिये कि महासंघ बने। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विभाजन के समय यह विचार व्यक्त किया था कि परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण हम दो राष्ट्र अलग-अलग हो रहे हैं लेकिन हमारा प्रयास होगा कि हम एक हो और यदि एक न हो सके तो एक ढीलाढाला महासंघ बनाने का प्रयास करेंगे। समाजसेवी सलाउद्दीन किदवाई ने कहा कि यह सम्मेलन विभिन्न स्थानों पर पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित होते हैं। गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए अधिवक्ता हुमायूं नईम खां ने कहा कि महासंघ बनना आज के समय की व्यापक उपयोगिता है। आॅल इण्डिया मुस्लिम वारसी समाज के अध्यक्ष हाजी वासिक वारसी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी में प्रमुख रुप से मृत्युंजय शर्मा, विनय सिंह, रवि प्रताप सिंह, मनीष सिंह, सत्यवान वर्मा, बबुआ तिवारी, नीरज दूबे, अनिल यादव, राहुल यादव आदि लोग मौजूद रहे।

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