राजनीतिक कुचक्र में उलझे छात्रों की आड़ में प्रायोजित हिंसा? सियासी मंदी के दौर में राजनीति चमकाने में जुटे नेता गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए शायद ही कभी सड़क पर उतरे हो ! सी ए ए एवं एनआरसी के मुद्दे पर विपक्ष की मुहिम सफल! सरकार की अग्निपरीक्षा। विदेशी मुस्लिमों के लिए क्यों परेशान हैं भारतीय मुसलमानों के ठेकेदार ?

कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)

 सियासतदानों की राजनीतिक पराकाष्ठा के कुचक्र में उलझे कई शिक्षा संस्थानों के छात्र प्रायोजित हिंसा की चपेट में घिर गए हैं! जबकि सी ए ए एवम एन आर सी के मुद्दे पर विपक्ष की सुनियोजित मुहिम सफल रही है। अब इससे निपटना केंद्र सरकार की अग्निपरीक्षा है। विदेशी मुस्लिमों के लिए भारतीय मुस्लिमों के कथित ठेकेदार परेशान हैं? जबकि सवाल यह भी है क्या कभी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए विपक्ष के नेता सड़क पर उतरे हैं?

देश इस समय संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर अजीबोगरीब तनाव व हिंसा की तपिश में तपता दिख रहा है। केंद्र की सरकार बार-बार कह रही है कि इस कानून से भारतीय मुस्लिमों को कोई फर्क नहीं हैं। उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है ।लेकिन उसके बावजूद एक ऐसा सुनियोजित वातावरण बनाया गया जिसमें कई शैक्षिक संस्थानों के छात्र भी कुत्सित राजनीति के मोहरे बन गए! जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के बाद अराजक तत्वों को ऐसा अलादीन का चिराग मिला कि देश के कई शैक्षिक संस्थान हिंसा की चपेट में आ गए ।पढ़ने के लिए हॉस्टल में रहने वाले छात्रों की भीड़ में घुसे अराजक तत्वों ने पुलिस बल पर पत्थर चलाएं, बोतलें फेंकी, कई स्थानों पर सरकारी बसें फूंक दी गई, मोटर साइकिलें जला दी गई, सरकारी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाया गया। क्या यह लोकतंत्र में विरोध का सही रास्ता है? जाहिर है कि कई नेताओं की राजनीतिक पराकाष्ठा के कुचक्र में छात्र भी उलझ कर रह गए। जिसका फायदा हिंसा को अंजाम देने वाले अराजक तत्वों ने जमकर उठाया।

जामिया में पुलिस कैसे घुसी इसका जवाब दिल्ली पुलिस अपने ढंग से दे रही है। आगे जांच भी होगी? लेकिन जामिया में अराजक तत्वों की मौजूदगी, इसकी भी तो जांच होनी चाहिए? लखनऊ के नदवा कालेज से भी पत्थर चले। यहां कॉलेज के प्रिंसिपल ने बड़ी मान मनोव्वल की लेकिन छात्र नहीं माने। पुलिस ने कई बार वार्ता की लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। अलबत्ता जब लाठीचार्ज हुआ तब लोग भागे।कुछ ऐसा ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुआ। वहां कई दिनों से जिस प्रकार से सी ए ए और एन आर सी के मुद्दे पर बिना सोचे समझे अथवा जाने बवाल की पटकथा तैयार की गई यह भी जांच का विषय है।

संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर लोकसभा एवं राज्यसभा में पिटा विपक्ष अपनी हार को पचा नहीं पा रहा है।कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि देश के कई प्रमुख विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ऐसी सस्ती बयान बाजी की जिसने देश में हिंसा आग में घी डालने का काम किया! पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सड़क पर उतरती है तो कांग्रेस की प्रियंका गांधी इंडिया गेट पर कांग्रेसी नेताओं के साथ धरना देती हैं! यही नहीं ओवैसी जैसे नेता तो ऐसा बोलते हैं कि जैसे लगता है कि वह देश के बहुसंख्यक समाज से लड़ रहे हो? सवाल है कि क्या कभी उपरोक्त यह नेता अथवा दल कभी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए भी सड़क पर उतरे ?कभी इन नेताओं ने जम्मू कश्मीर सहित देश के अंदर ही लगभग 7 प्रदेशों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो गया? और उन पर अत्याचार हुए उनको लेकर भी सड़क पर उतरे? विश्व के कई देशों में जहां पर हिंदू, सिख व अन्य कई अल्पसंख्यक लोगों पर अत्याचार हुए कभी उन्होंने उसके विरुद्ध आवाज उठाई! जवाब एक ही मिलेगा बिल्कुल नहीं?

दुर्भाग्य है कि उपरोक्त विपक्षी नेताओं की नजर में पूरी दुनिया में केवल और केवल अल्पसंख्यक एक ही धर्म से जुड़े हुए लोग हैं! ओवैसी और ममता तथा प्रियंका गांधी एवं सोनिया गांधी ,राहुल गांधी रोहिंग्या के मुस्लिमों की आवाज उठाते हैं लेकिन पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदुओं को सिखों, पारसी, बौद्धों के बारे में इनकी आवाज गले के अंदर ही रह जाती है! इन्हें भारत के सम्मान की तब ही आती है जब जब देश में घुसे घुसपैठियों के खिलाफ कोई बड़ा कानून सामने आता है।

देश में विपक्ष की हालत बीते कई वर्षों से केंद्र की मोदी सरकार के आगे रेंगते हुए केंचुए की तरह हैं! कई प्रयास हुए लेकिन विपक्ष मोदी सरकार के विरुद्ध कोई बड़ा जन आंदोलन नहीं कर सका। ऐसे में नागरिकता कानून एवं एनआरसी के मुद्दे पर भ्रम की स्थिति को फैला कर देश के जिम्मेदार नेताओं ने अपनी राजनीतिक दुकानों को चमकाने का ऐसा गंदा प्रयास किया है जिसे देश का जागरूक नागरिक समझ रहा है। सियासी मंदी के दौर में घिरा विपक्ष आज सत्ता की चाभी को खोज रहा है ।लेकिन शायद उसे यह पता नहीं सत्ता की चाभी उसे देश की जनता देगी।
देश की जनता का मिजाज आज यह बन गया है कि वह किसी भी हालत में देश के अंदर घुसे गद्दारों, घुसपैठियों को बर्दाश्त नहीं करना चाहती।

देश के कई नेता अपनी राजनीतिक पराकाष्ठा को मंजिल तक पहुंचाने के लिए देश के पढ़ने लिखने वाले छात्रों को भ्रमित कर सड़क पर उतार उन्हें हिंसक बनाने का प्रयास कर रहे हैं? जरूरत है छात्रों को भी अपना भला बुरा सोचने और समझने की। देश के प्रधानमंत्री व गृहमंत्री बार-बार यह कह रहे हैं कि पहले आप लोग नागरिकता कानून का अध्ययन करें उसके बाद इस मुद्दे पर अपनी राय बनाइए। बिना उनकी अपील को समझे व कानून का अध्ययन किए ही सरकार पर बरसना, हिंसक हो जाना यह छात्रों को एक अंधे बहरे की स्थिति के नजदीकी पहुंचाता है!

देश में अराजक तत्वों के द्वारा फैलाई जा रही हिंसा के ऊपर सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी प्रतिक्रिया की है। जिसमें कोर्ट ने साफ कहा है कि हिंसा और सुनवाई एक साथ नहीं हो सकती पहले हिंसा रोकी जाए। केंद्र की सरकार को भी अब काफी सतर्क अंदाज में इस मुद्दे की आड़ में हो रही राजनीति से निपटना पड़ेगा
। जिस प्रकार से देश में अलग-अलग क्षेत्र में हिंसा फैलाई जा रही है उससे निपटने में सरकार को अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ेगा। खास बात यह भी है कि देश में मुसलमानों के कथित ठेकेदार नेता एवं विपक्ष के लोग विदेशी मुस्लिमों के लिए इतना क्यों परेशान है यह बात भी समझ से परे है? लोकतांत्रिक विरोध का तकाजा यह था कि जब लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष बुरी तरह हारा तो उसे सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेना चाहिए था। खबर है कि कई लोग सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध गए भी है। कोर्ट में न्याय मांगोऔर सड़क पर हिंसा! दोनों एक साथ कैसे हो सकता है। कुल मिलाकर शैक्षिक संस्थानों के छात्र कई सियासी नेताओं की राजनीतिक पराकाष्ठा के कुचक्र में भ्रमित होकर व उलझ कर रह गए हैं ! छात्रों की भीड़ में घुसे अराजक तत्व प्रायोजित हिंसा को फैला रहे हैं! जो देश विरोधी अथवा समाज विरोधी तत्व हैं इन से कड़ाई से निपटने की नितांत आवश्यकता है?कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)

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