बागी भाजपा नेता सरयू राय ने भाजपा नेतृत्व का तोड़ा घमंड ,दिखाई अपनी ताकत तो सत्ता से बाहर हुई भाजपा।
कांग्रेस के लिए भाग्यशाली साबित हुई सोनिया गांधी, हेमंत सोरेन का जलवा।
? अभी महाराष्ट्र का दर्द कम नहीं हुआ था कि आज झारखंड भी भाजपा के हाथों से फिसल गया ।यहां संपन्न चुनाव परिणाम जब सामने आए तो भाजपा का पूरा चुनावी प्रबंधन झंडू बाम साबित हुआ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से जोश में सने भाजपाइयों को जब होश आया तब तक झारखंड की सत्ता से भाजपा की विदाई हो चुकी थी। यहां की जनता ने राष्ट्रीय मुद्दों से इतर महंगाई एवं बेरोजगारी तथा स्थानीय समस्याओं को ज्यादा तरजीह दी। जबकि बागी भाजपाई सरयू राय ने भाजपा नेतृत्व को दिखा दिया कि समर्पित एवं इमानदार भाजपा नेता अथवा कार्यकर्ता की अनदेखी पार्टी को कितना भारी पड़ती है।
वहीं दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं कांग्रेस तथा राजद के गठबंधन ने शानदार सफलता अर्जित करते हुए झारखंड में अपनी सत्ता की पताका लहरा दी ।जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक बार फिर पार्टी के लिए भाग्यशाली साबित हो रही है! ऐसे में यदि भाजपा नेतृत्व अपनी राज्य की सरकारों के क्रियाकलापों पर गंभीर ना हुआ तो आने वाले दिनों में उसे झारखंड जैसा झटका मिलेगा और हाथों में झुनझुना?
बीते पूरे 1 वर्ष का समय काल यदि देखा जाए तो केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अब तक विधानसभा चुनाव में 5 प्रदेशों को गंवा चुकी है। ताजा नंबर है झारखंड का ।जहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं कांग्रेस तथा राजद के गठबंधन ने जोरदार सफलता हासिल कर भाजपा को यहां की सत्ता से उतार फेंका है। झारखंड के चुनाव परिणाम पर यदि गौर करें तो एक सत्य यहां साफ नजर आ रहा है कि यहां पूरा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर अपने परिणाम लाया। यहां राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से इतर स्थानीय मुद्दे तथा रघुवर सरकार की असफलताओं का जो लव्वोलुआब था वह भाजपा को ले डूबा भाजपा। एक उपलब्धि भाजपा यह थी कि रघुवर दास पूरे 5 वर्षों तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का रिकार्ड कायम कर गये।
जबकि खनन क्षेत्र हो, चाहे उद्योग क्षेत्र में यहां पर भाजपा सरकार बुरी तरह असफल रही! इसके अलावा कई आदिवासी इलाकों में जमीन को लेकर बनाए गए नियमों से भी भाजपा को तगड़ा नुकसान पहुंचा! जहां कांग्रेस गठबंधन ने हेमंत सोरेन के रूप में आदिवासी समाज के व्यक्ति को आगे किया वहीं भाजपा ने छत्तीसगढ़ के रहने वाले रघुवर दास जोकि आदिवासी नहीं थे उन्हें ही आगे रखकर चुनाव लड़ा? जो कि भाजपा के लिए महंगा साबित हुआ।
झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की जोड़ी ने हमलावर प्रचार प्रसार किया। लेकिन सब किया कराया मिट्टी हो गया। एक जनसभा में जब भीड़ कम दिखी तब अमित शाह ने सरेआम कह दिया था कि इतनी भीड़ से चुनाव नहीं जीत सकते। खबर यह भी है कि भाजपा ने जो पार्टी सर्वे कराया था उसमें भी भाजपा को 35 सीटों के अंदर ही सीटें मिलती नजर आई थी?
भाजपा को उम्मीद थी कि राम मंदिर, धारा 370 एवं सी ए ए उसे फिर से सफलता हासिल हो जाएगी लेकिन सब सपना ही रह गया। भाजपा का खेल यहां बागी एवं पुराने भाजपाई सरयू राय ने भी बिगाड़ दिया ।भाजपा नेतृत्व ने उनका टिकट काटा तो इस पुराने बागी भाजपाई ने भाजपा की सत्ता की जड़ों को काट डाला। इसके अलावा सरयू ने अपने वेग से अमित शाह के कदमों को डिगा दिया। बागी राय ने आज कहा कि वह केवल रघुवर दास को मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते थे जो हो गया। इसके अलावा भाजपा नेतृत्व के अहंकार को भी चोट पहुंचाना चाहते थे।यह मंशा भी मेरी पूरी हो गयी।
भाजपा के चुनाव प्रबंधन की बात करें तो भाजपा यहां भी पिछड़ी नजर आई ।आजसू से उसका गठबंधन हुआ ही नहीं। जबकि इसमें प्रत्याशी चयन में काफी देर हो गई ।इसके अलावा भाजपा के पोस्टरो पर नरेंद्र मोदी एवं रघुवर दास के चेहरे ही नजर आए? स्थानीय नेताओं को इसमें नकारा गया।
जहां तक सवाल है नागरिकता संशोधन कानून का तो उसका ज्यादा असर भाजपा पर नहीं पड़ा है? क्योंकि जो लोग भी नागरिकता संशोधन एवं इससे जुड़े मुद्दों का विरोध कर रहे हैं उन्होंने पहले से भी भाजपा से दूरी बना रखी थी?
उधर कांग्रेस गठबंधन में पोस्टरो पर स्थानीय नेताओं को तरजीह दी गयी। इसके अतिरिक्त 5 साल तक चली भाजपा सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल था जिसे भाजपा के पुरोधा समझ ही नहीं पाए । भाजपाइयों को उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के सहारे एक बार फिर झारखंड में नैया पार लग जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां नरेंद्र मोदी पूरी तरह निष्प्रभावी साबित हुए! जबकि रघुवर दास जो कि निवर्तमान मुख्यमंत्री हैं वह व उनके कर्म प्रभावी रहें ।परिणाम भाजपा सत्ता से बाहर हो गई?
यदि बात करें झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं कांग्रेस तथा राजद गठबंधन की तो शायद कांग्रेस के लिए सोनिया गांधी काफी लकी है। क्योंकि श्रीमती गांधी ने जबसे कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला है उसके बाद अब तक दो प्रदेश कांग्रेस को सत्ता के मुकुट से सुशोभित कर चुके हैं। महाराष्ट्र और अब झारखंड। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन आदिवासी हैं और वह झारखंड के जमीनी मामलों को अच्छी तरह समझते हैं ।यहां सोरेन के गठबंधन ने चुनाव प्रचार में बाजी मारी और सफलता हासिल कर कांग्रेस झामुमो गठबंधन को सत्ता प्रदान कर दी ।
कांग्रेस के नेता सोनिया गांधी ,राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने भी यहां खूब प्रचार किया ।लेकिन उन्होंने अपने भाषणों में ज्यादातर स्थानीय समस्याओं पर अपना फोकस रखा। बीते 1 वर्ष में पांच प्रदेश भाजपा के हाथों से बाहर जा चुके हैं ।जिसका सीधा संदेश है कि प्रदेश स्तर पर अब जनता भाजपा के मुख्यमंत्री थे अथवा हैं उनके कार्यों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाना प्रारंभ कर चुकी है। केंद्र में भले ही वह नरेंद्र मोदी को एकमात्र विकल्प समझे? अब लग रहा है कि मोदी के नाम का जादू घट रहा है ?
जनता को राष्ट्रवाद के मुद्दों के साथ-साथ महंगाई, बेरोजगारी, से भी निजात चाहिए। जिसमें झारखंड की रघुवर दास सरकार असफल साबित हुई। रघुवर दास एवं भाजपा के पांच अन्य मंत्री चुनाव हार चुके हैं। भाजपाइयों को इस मिथक से अब हट कर अपने कर्तव्य व कर्म पर भी फोकस करना होगा? समझना होगा कि सब कुछ मोदी है तो मुमकिन है? के नारे से हासिल नहीं किया जा सकता! फिलहाल झारखंड के झटके से पूरी भाजपा झनझना कर रह गई है। जबकि कांग्रेस इस सफलता से खिलखिला पड़ी है।
आत्मा मंथन का समय है! भाजपा के नेताओं को अब घमंड से दूर रहकर जहां पर भी वह प्रदेशों की सत्ता में काबिज है वहां की स्थानीय समस्याओं पर भी उसे ध्यान देना होगा! अन्यथा आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होंगे तो उसका हाल महाराष्ट्र एवं झारखंड या फिर? और पीछे जाएं तो राजस्थान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के जैसा ही होगा?