1000 से अधिक छुट्टा मवेशी बने आफत कभी रोकते राह तो कभी चर जाते फसल, छुट्टा मवेशी क‌ई बार हो चुके जानलेवा

श्रीनिवास त्रिपाठी...

बाराबंकी। एक अनुमान के मुताबिक जनपद मे 1000 से अधिक छुट्टा मवेशी आफ़त बने हुए है। छुट्टा मवेशी कभी मुख्य मार्गों पर डेरा जमा लेते है ,तो कभी खेतो मे किसानों की फसल बर्बाद कर देते है ।पिछले कुछ महीनों मे छुट्ट मवेशियों के हमलो मे किसान एवं जनसामान्य की मौत की सूचना भी प्रकाश मे आई है। छुट्ट मवेशियों से होने वाली समस्याएं किसी से छुपी नहीं है। किसानों को छुट्ट मवेशियों से फसलों को बचाने के लिए खेतों मे ही डेरा डखलना पड़ता है। वावजूद इसके किसी भी किसान की फसल को छुट्टा मवेशी नुकसान पहुंचा ही देते है ।शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक के मार्गों पर छुट्ट मवेशी जगह जगह विचरण करते नजर आते है। सूत्रों की मानें तो बीते बुधवार को लखनऊ फैजाबाद हाइवे पर बाइक से जा रहे दो नवयुवकों को छुट्टा मवेशियों ने अपनी जद मे ले लिया, तथा गम्भीर रूप से घायल कर दिया । जिन्हें उपचार के लिए लखनऊ ले जाया गया ।शहर के भीड़ भाड़ के क्षेत्रों की सड़कों पर निरंकुश विचरण करने वाले मवेशियों की वजह से कभी भी बड़ा हादशा हो सकता है। जनपद मे 39 गौशालाएं चलाई जा रही ।हर 50 गोवंश पर एक केयर टेकर नियुक्त है। केयर टेकर का पैसे का भुगतान गराम समिति करती है। 4 वर्ष पूर्व भारत सरकार की पशुगणना मे जिले मे 1095 का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सापेक्ष मे जिले मे 12500 गौशालाओं मे गोवंश को संरक्षित किया गया है। मुख्यमंत्री सहभागिता योजनान्तर्गत 956 लाभार्थियों को 1531 पशुओं का 71 लाख 80290 रूप्ये दिया गया।

खर्च हो चुके 18 करोड़ 42 लाख

पशुपालन विभाग के सूत्रों की मानें तो छुट्ट मवेशियों के भरण पोषण पर 18 करोड़ 42 लाख रु.खर्च किये जा चुके है। प्रत्येक मवेशी पर प्रति दिन 30 रू.खर्च किये जाने का नियम है। गौशालाओं को आत्म निर्भर बनाने की कवायद भी चलाई जा रही है। लेकिन चंद गौशालाओं को छोड़ दे तो कही भी यह कवायद परवान नहीं चढ़ पा रही है।

मुख्य पशु, चिकित्साधिकारी

छुट्टा मवेशियों के चलते होने वाली परेशानी स्वीकार करते है। लेकिन साथ ही इस दिशा मे होने वाले प्रयास का भी जिक्र करते है। समस्या का निस्तारण कैसे होगा ? के सवाल पर कहते है प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर एक गोशाला खोलने की मंशा है। उद्देश्य यह है उस न्याय पंचायत स्तर पर जितने भी मवेशी हो उन्हें वही संरक्षित किया जा सके।

 

 

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