मराह अपने होने का अंजाम ये हुआ, दुनिया में दबदबा ना दुआ में असर कोई नूर बाराबंकवी की याद में मुशायरे का हुआ आयोजन

सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी

बाराबंकी। शाद बड़ेलवी,जाहिद बाराबंकवी, अनवर सतरिखी के संयुक्त प्रयास से नगर के मोहल्ला बड़ेल में नूर बाराबंकवी की याद में एक मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता उस्ताद शायर हाजी नसीर अंसारी ने की। संचालन इरफान बाराबंकवी ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में उस्ताद शायर मोहम्मद जाबिर एडवोकेट व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात शायर उस्मान मीनाई उपस्थित थे। मुशायरे से पूर्व अपने अध्यक्षीय भाषण में नसीर अंसारी ने कहा कि स्वर्गीय नूर बाराबंकवी जिनका असली नाम अब्दुल रहमान था बड़े ही नेक दिल इंसान थे। शेरो शायरी में वह इतने माहिर थे कि आपके सामने बैठे बैठे कोई भी एक नई गजल कह देते। उस्मान मीनाई ने कहा कि यह बात मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि मैं नूर बाराबंकवी का शिष्य हूं।उनके चरणों में बैठकर जो कुछ भी मैंने सीखा है। वो आज मैं अपने कलाम के माध्यम से देश के अलावा विदेशों में भी पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं। मुशायरे का शुभारंभ कारी अबू हुरैरा ने नात पाक से किया। नूर बाराबंकवी के शिष्य अनवर सतरिखी ने नूर बाराबंकवी का यह शेर( ये न समझो कि हम गम के मारे नहीं۔۔गम के मारे तो हैं गम से हारे नहीं)।पढ़कर बहरिया मुशायरे का शुभारंभ किया। देर रात तक चलने वाले इस मुशायरे में शायरों ने श्रोताओं से खूब वाहवाही लूटी। सभी शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम प्रस्तुत किए। हाजी नसीर अंसारी ने कहा कि-अगर ना हो तुम्हें आना तो साफ कह दीजिए। यह आज और यह कल ओर अभी तभी क्या है। जाबिर एडवोकेट ने पढ़ा- फिरका परस्ततो तोड़ ना पाओगे ता हयात। रिश्ता हमारा ऐसा है हिंदुस्तान से। उस्मान मीनाई ने कहा-अक्स गर आपका नहीं होता। आईना-आईना नहीं होता। इरफाऊन बाराबंकवी ने कहा इश्क में अंजाम किसने सोचा है जिसे भी देखिए हद से गुजरता जाता है।हुजैल लालपुरी ने पढ़ा कि- आज मजलूम कहां जाएंगे जब बैठे हैं। मसनदे अद्ल पे जालिम को बचाने वाले।। रेहान बाराबंकवी ने पढ़ा कि- तलवार से ना तीर से बरछी कटार से। घायल तो लोग होते हैं नजरों के वार से।। फैज आतिश ने कहा- कैद दिवानों को जब करना होता है। जुल्फों की जंजीर बनाई जाती है।। नफीस बाराबंकवी ने कहा कि- जो अपनी गलतियों पर शर्मसार होता है। वही बशर तो बड़ों में शुमार होता है।। शाद बड़ेलवी ने कहा-है दिल में मेरे चांद को छूने की तमन्ना।उड़ता हुआ पंछी हूं बुलंदी पे नजर है।।जाहिद बाराबंकवी ने कहा कि- चल पड़े हो जो मोहब्बत की तरफ। फिक्र क्या  तुमको नहीं है जान की।। अनवर सतरिखी ने कहा कि- रफ्ता रफ्ता एक दिन जल जाएगा सारा चमन। आग फूलों में तआस्सुब का लगाना छोड़ दो।।शहरुख मूबीन ने कहा कि- गुमराह अपने होने का अंजाम ये हुआ। दुनिया में दबदबा ना दुआ में असर कोई।। तालिब आला पुरी ने कहा-कल मुझे दर्द छुपाना पड़ा। सामने उनके मुस्कुराना पड़ा।। अरशद सतरिखी ने कहा-अश्क आंखों में जो नहीं आए। लोग समझे मैं गम जदा ही नहीं।।इस अवसर पर फैज किदवाई, मोहम्मद हसन, सैयद उजैर अहमद, मोहम्मद अफसर, मोहम्मद जैद, शमसुद्दीन नाजमी,वकार खान, जीशान, अफरोज, सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे मुशायरे के अंत में आयोजकों ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।

सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी

 

 

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