बाराबंकी से शुरू हुआ ज्ञानमती माता का वैराग्य
सुहेल अंसारी संवाददाता नगर बाराबंकी एसएम न्यूज़24टाइम्स 8081991270
बाराबंकी एसएम न्यूज़24टाइम्स जैन धर्म की गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी का जन्म 22 अक्टूबर सन् 1934, को शरद पूर्णिमा के दिन टिकैतनगर, बाराबंकी में हुआ। उनके पिता छोटेलाल जैन और माता श्रीमती मोहिनी देवी थी। गणिनी प्रमुख के बचपन का नाम मैना था। माँ को दहेज में प्राप्त ‘पद्मनंदिपंचविंशतिका’ ग्रन्थ के नियमित स्वाध्याय एवं पूर्वजन्म से प्राप्त दृढ़ वैराग्य संस्कारों के बल पर मात्र 18 वर्ष की अल्पायु में ही शरद पूर्णिमा के दिन मैना ने आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज से सन् 1952 में आजन्म ब्रह्मचर्य व्रतरूप सप्तम् प्रतिमा एवं गृहत्याग के नियमों को धारण कर लिया। उसी दिन से उनके जीवन में 24 घंटे में एक बार भोजन करने के नियम का भी प्रारंभीकरण हो गया। नारी जीवन की चरमोत्कर्ष अवस्था आर्यिका दीक्षा की कामना को अपनी हर साँस में संजोये ब्र. मैना सन् 1953 में आचार्य श्री देशभूषण जी से ही चैत्र कृष्णा एकम् को श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र में ‘क्षुल्लिका वीरमती’ के रूप में दीक्षित हो गईं। सन् 1955 में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की समाधि के समय कुंथलगिरी पर एक माह तक प्राप्त उनके सान्निध्य एवं आज्ञा द्वारा ‘क्षुल्लिका वीरमती’ ने आचार्य श्री के प्रथम पट्टाचार्य शिष्य-वीरसागर जी महाराज से सन् 1956 में ‘वैशाख कृष्णा दूज’ को माधोराजपुरा (जयपुर-राज.) में आर्यिका दीक्षा धारण करके ‘आर्यिका ज्ञानमती’ नाम प्राप्त किया।
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