कथाव्यास महेंद्र “मृदुल ” जी ने चित्रकूट की महिमा का बहुत ही सुन्दर भाव में बखान किया
शान्ती देवी अवधेश वर्मा एसएम न्यूज़24टाइम्स विशेष संवाददाता मसौली जनपद बाराबंकी 8707331705
मसौली बाराबंकी। ग्राम हरिपुरवा में चल रही सात दिवसीय रामकथा के छठे दिन नैमिष क्षेत्र (सीतापुर) आये हुए कथाव्यास महेंद्र “मृदुल ” जी ने चित्रकूट की महिमा का बहुत ही सुन्दर भाव में बखान किया उन्होंने सुनाया की भगवान ने चित्रकूट में रहकर नाना प्रकार की लीलाएं की और फिर वहाँ से आगे बढ़े तो माता अनुसुइया अि महामुनि के आश्रम पर गये तो माता अनुसुइया जी ने माता सीता जी को नारी धर्म का उपदेश दिया और अनि महामुनि जी ने भगवान राम जी के साथ भहुत ही सुंदर सत्संग किया फिर वहां से आगे बढ़े तो गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी (दंडकवन) में जाकर निवास किया कुछ समय जब वहां व्यतीत हुए तो एक दिन एक घटना घटी रावण की बहन सूर्पणखा आयी तो जिस प्रकार से उसके नाक, कान लक्षमन जी ने काटे वो सारा प्रसंग बहुत ही मार्मिक भाव में सभी भक्तों ने श्रवण किया “मृदुल” जी ने बताया जब शूर्पणखा की ये गति हुयी। तो तुरन्त दौड़ कर अपने छोटे भाई खर दूषण के पास गई और और सारा हाल कह सुनाया बहन की ये गति देखकर खरदूषण आग बबूला हो गया और चौदह हजार वीरों की सेना लेकर प्रतिशोध चुकाने चल पड़े लेकिन जब वहां पहुंचे तो राम जी ने उन सबका संधार पल मात्र में ही कर दिया ये देखकर शूर्पणखा को और क्रोध आया तो रावण की सभा में जाकर उसने रावन से सारी घटना कह सुनाई तो रावण ने कहा क्या ये बात तुमने खरदूषण से नही कहा तो उसने कहा भैय्या में सबसे पहले उन्ही के पास गई थी और मैं खड़ी देख रही थी लेकिन उस तपसी ने उन सबका संघार कर दिया तब मैं आपके पास आई हूं यह सुनकर रावण ने विचार खरदूषण मोहि सम बलवंता । तिनहि को मारे बिनु भगवन्ता और सोंचा हो न हो भगवान का अवतार इस धरा पर हो चुका है। क्योंकि खरदूषण मेरे समान तपशाली और बलशाली है उनको मार गिराया पृथ्वी पर तो निश्चित रूप से मेरी भी मुक्ति का इन्ही तपस्वियों के हांथो होनी है विचार किया अब हम इनसे वैर भाव ही रखूंगा और बहन को धीरज बंधाकर बोला मैं अभी दंडकवन जाता हूं और इस नाक काटने का बदला मै उनकी स्त्री का हरण करके चुकाऊंगा और चल पड़ा पहुंचा कहा मामा मारीच के पास और उसके पास जाकर बोला तुम मेरा एक काम करो तुम सोने का मृग बनकर पंचवटी में राम लक्षमन जी को भटकावो चलकर अवसर पाकर मैं उनकी पत्नी सीता का हरण कर लूंगा मारीच ने समझाया कि राजन अवगुणों का हरण करके प्रभु का भजन करो चोरी वाला कृत्य ठीक नही अभिमान वस रावण न माना और जाकर पंचवटी से माता जानकी जी का हरण कर लिया और लंका को चला गया अशोक वाटिका में सीता माता को ठहराया गया। इस मौके पर प्रेम चन्द्र वर्मा, अतुल वर्मा, डॉ देशराज,बुधराम, अमित कुमार, कुलदीप जयसवाल,गुरुवचन सहित महिलाएं, पुरुष और बच्चों ने कथा का श्रवण किया।
शान्ती देवी अवधेश वर्मा एसएम न्यूज़24टाइम्स विशेष संवाददाता मसौली जनपद बाराबंकी 8707331705