जानी नुक़सान से बचने के लिए फ़्रांस ने इराक़ से निकाले सैनिक, वाशिंग्टन के फ़ेल मिशन का हिस्सा नहीं बनना चाहता पैरिस, जनरल सुलैमानी का इंतेक़ाम बहुत क़रीब है!
समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ
इराक़ की बात करें तो वहां राख के नीचे एक दो नहीं कई चिंगारियां मौजूद हैं। यहां हम कोरोना वायरस की बात नहीं कर रहे हैं जो इराक़ में बड़ी तेज़ी से फैल रहा है बल्कि हम दूसरे प्रकार के वायरसों की बात करना चाहते हैं जो कोरोना वायरस से कम ख़तरनाक नहीं हैं।
साफ़ साफ़ कह दें कि हम इराक़ की धरती पर विदेशी सैनिकों की छावनियों के बारे में बात करना चाहते हैं। इराक़ में एक तरफ़ तो सरकार का गठन नहीं हो पा रहा है और दो बार प्रधानमंत्री नामज़द होने के बावजूद सरकार का गठन नहीं हो सका और दूसरी तरफ़ हालात एसे बन गए हैं कि आने वाले महीनों या हफ़्तों में वहां ईरान की घटक फ़ोर्सेज़ और अमरीकी सैनिकों के बीच लड़ाई छिड़ सकती है। इस लड़ाई में सबसे पहला निशाना अमरीकी छावनियां होंगी।
अमरीकी फ़ोर्सेज़ के जनरल कमांडर अब्दुल करीम ख़लफ़ ने बुधवार को घोषणा की कि फ़्रांसीसी फ़ोर्सेज़ इराक़ की धरती से बाहर निकल रही हैं जबकि अमरीकी एलायंस के सैनिक पहले ही अलक़ायम नामक छावनी ख़ाली कर चुके हैं जो इराक़ और सीरिया की सीमा पर स्थित है। अमरीकी सैनिक नेतृत्व बहुत जल्द आठ में से अपनी दो छावनियां ख़ाली करने का इरादा रखता है।
बग़दाद के उत्तर में स्थित अलताजी छावनी पर मिसाइल हमले की ज़िम्मेदारी एक संगठन ने ली जिसका इससे पहले नाम नहीं सुना गया, एक हमले में दो अमरीकी सैनिकों और एक कांट्रैक्टर की मौत हो गई थी। जबकि बग़दाद के अलख़ज़रा इलाक़े में अमरीकी दूतावास पर भी कई बार मिसाइल हमले हुए, करकूक इलाक़े में अमरीकी सैनिक छावनी के-2 पर भी मिसाइल गिरे। यह सारी घटनाएं अमरीकी प्रशासन के लिए गंभीर वार्निंग थी कि इराक़ की धरती पर अमरीका और उसकी सैनिक छावनियों के लिए कोई जगह नहीं है और यह तो अभी शुरुआत है।
फ़्रांसीसियों ने इस चेतावनी को बहुत जल्दी समझ लिया और अपने सैनिक निकाल लिए। अब हो सकता है कि ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश भी अपने सैनिक इराक़ से बाहर निकाल लें क्योंकि इराक़ की संसद ने बहुत खुले शब्दों में प्रस्ताव पारित करके मांग की है कि इराक़ की धरती पर विदेशी सैनिकों की उपस्थिति समाप्त होनी चाहिए और जो भी अपने सैनिक खुद नहीं निकालेगा उसे बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया जाएगा।
दो बड़े कमांडरों जनरल क़ासिम सुलैमानी और अबू महदी अलमुहंदिस की बग़दाद एयरपोर्ट के बाहर अमरीकी ड्रोन हमले में हत्या का ईरानी और इराक़ी इंतेक़ाम अभी पूरा नहीं हुआ है। ईरान और इराक़ का एलायंस अपनी हस्तियों की हत्या पर चुप रहने वाला नहीं है और अगर चुप है तो यह इंतेक़ाम की अच्छी तैयारी के लिए है। ताकि इंतेक़ाम उनके शहीदों के महान स्थान के स्तर का हो।
अमरीका ने शायद इराक़ में नए मनोनीत प्रधानमंत्री अदनान अलज़र्फ़ी से उम्मीदें लगा रखी हैं जिन्हें सरकार गठन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है मगर अमरीकियों का ज़र्फ़ी से उम्मीद लगाना बेकार है। एक तो ज़र्फ़ी के लिए सरकार बना पाना ही कठिन लग रहा है और अगर वह बना भी ले गए तो संसद के प्रस्ताव की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे।
अमरीका ने 17 साल पहले इराक़ युद्ध का फ़ैसला करके अपनी मूर्खता से 6 ट्रिलियन डालर बर्बाद किए, 3500 सैनिकों की जानें गवांई और 30 हज़ार से अधिक अमरीकी सैनिकों को घायल करवाया और अब यह भी निश्चित है कि उसे इराक़ में अपनी सारी सैनिक छावनियां ख़ाली करनी पड़ेंगी। अमरीका को इराक़ से अपमानित होकर बाहर निकलना पड़ेगा और उसे इराक़ के जांबाज़ बाहर निकालेंगे। अमरीका को उसी तरह इराक़ से निकलना पड़ेगा जिस तरह वह अफ़गानिस्तान और उससे पहले वियतनाम से निकल चुका है।
फ़्रांस ने बहुत अच्छा किया जो अमरीकी कार्यक्रमों से अपना संबंध समाप्त करके अपने सैनिकों को इराक़ से वापस बुला लिया। इस तरह वह जानी नुक़सान से बच गया। क्योंकि आने वाले समय में और भी बड़ी घटनाएं होने वाली हैं।
स्रोतः रायुल यौम