दीवारो दर ख़ुशी से सजाए हुए हैं हम। आ जाइए कि आंखें बिछाए हुए हैं हम।। बज़्म अज़ीज़ का मासिक तरही मुशायरा आयोजित

बाराबंकी।( ) बज़्म अज़ीज़ का मासिक तरही मुशायरा नबीगंज स्थित हाजी नसीर अंसारी के आवास पर आयोजित हुआ। मुशायरे की अध्यक्षता अख़्तर जमाल उस्मानी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में सीतापुर से आए नफ़ीस सीतापुरी तथा अज़ीमुद्दीन अशरफ़ इस्लामिया इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त अध्यापक मोहसिन क़िदवई उपस्थिति रहे। बज़्म के जनरल सेक्रेटरी हुज़ैल लालपुरी के संचालन में आयोजित मुशायरे में शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम पेश किए।
हाजी नासिर अंसारी- समझे ना कोई बस यूंही आए हुए हैं हम। महफ़िल है जिसकी उसके बुलाए हुए हैं हम।।
मोहसिन क़िदवई – ऐसा नहीं कि ख़ुद को छुपाए हुए हैं हम। आईना अपने सामने लाए हुए हैं हम।।
नफ़ीस सीतापुरी – इस तरह तेरे शहर में आए हुए हैं हम। जैसे किसी खजूर के साए हुए हैं हम।।
ज़मीर फ़ैज़ी- माना कि आबरू-ए ग़ज़ल हम नहीं ज़मीर। हां आबरु ग़ज़ल की बचाए हुए हैं हम।।
हुज़ैल लालपुरी – लालच के बेईमानी के बुग़्ज़ो हसद के बुत। अपने दिलों में अब भी बसाए हुए हैं हम।।
डॉक्टर रेहान अलवी – दीवारो दर ख़ुशी से सजाए हुए हैं हम। आ जाइए की आंखें बिछाए हुए हैं हम।।
आदर्श बाराबंकवी – कुछ यूं ख़ुशी को ग़म से दबाए हुए हैं हम। ग़ुरबत किसी तरह से बचाए हुए हैं हम।। मिस्टर अमेठवी – कुछ मसलहत है इसलिए ख़ामोश हैं अभी।ऐसा नहीं कि मेहंदी लगाए हुए हैं हम।।कलीम आज़र- तालिब तेरी मदद के हैं ए रब कायनात। तुझसे ही सब उमीद लगाए हुए हैं हम।। कलीम तारिक़ – मुद्दत हुए छुए थे तेरे फूल जैसे हाथ। अब तक के खुशबुओं में नहाए हुए हैं हम।।असर सैदनपुरी- ये कम नहीं जो करके दिखाए हुए हैं हम। इस अहद में वक़ार बचाए हुए हैं हम।। बशर मसौलवी – जब चाहे देख लेते हैं हम उसमें हुस्न यार। आईना अपने दिल को बनाए हुए हैं हम।।
नफ़ीस बाराबंकवी – जिसने हमारे दिल को दिवाना बना दिया। दिल में उसी की याद बसाए हुए हैं हम।। आरिफ़ शहाबपुरी – कोई हमें बताए उन्हें कैसे भूल जाएं। जो लम्हे उनके साथ बिताए हुए हैं हम।। कैफ़ बड़ेलवी- पूछो ना हाल कुछ भी मुक़द्दर का दोस्तों। अपने ही घर में आज पराए हुए हैं हम।।सरवर किन्तूरी – यूं ही नहीं वक़ार गवाए हुए हैं हम। इस्लाफ़ के उसूल बुलाए हुए हैं हम।। शम्स ज़िकरयावी – हालात ज़िंदगी के सताए हुए हैं हम। फिर भी हंसी लबों पे सजाए हुए हैं हम।।सबा जहांगीराबादी – यूं ही नहीं सरों को झुकाए हुए हैं हम। सज्दों से कुछ ज़रूर ही पाए हुए हैं हम।।तफ़ील जैदपुरी- सूरज सितारे चांद उगाए हुए हैं हम। धरती को आसमान बनाए हुए हैं हम।।नज़र मसौलवी – है रुह का ठिकाना अदम जिस्म का जमीं। कुछ दिन के वास्ते यहां आए हुए हैं हम।।क़मर बाराबंकवी – सर की हमारी बोलियां लगवा रहा है वो। फिर भी उसी को सर पे चढ़ाए हुए हैं हम।। तालिब आलापुरी- ए ज़ीस्त तेरे नाज़ उठाने के वास्ते। इस सर पे बोझ ग़म का उठाए हुए हैं हम।।
बज़्म के जनरल सेक्रेटरी हज़ैल लालपुरी ने सभी शायरों और श्रोताओं का शुक्रिया अदा करते हुए आभार प्रकट किया। हुज़ैल लालपुरी ने बताया कि मार्च के दूसरे इतवार को मिसरा तरह “हर फूल हर कली में मिली मुझको बू तेरी” बू क़ाफ़िया तेरी रदीफ़ पर होगा

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