योगी की पारदर्शी व्यवस्था पर दाग लगाती लेखपालों की कार्यशैली

प्रदीप सारंग 9919007190

बाराबंकी  एक सप्ताह पूर्व की ही बात है, बाराबंकी की सदर तहसील नवाबगंज के लेखपाल मनोज सिंह को अयोध्या की एंटीकरप्शन टीम ने रंगे हाथ घूस लेते पकड़ा है। आरोप है कि लेखपाल द्वारा एक किसान से वरासत दर्ज करने को लेकर घूस माँगी गयी थी। इसी सप्ताह जनपद सिद्धार्थ नगर की तहसील डुमरियागंज के एक लेखपाल दीपक शँखवार पर आरोप लगा है कि एक जीवित व्यक्ति अब्दुल हकीम को मृत दिखाकर लगभग 12 बीघे जमीन की वरासत किसी भूमाफिया के नाम दर्ज कर दी है। वह जीवित व्यक्ति कई वर्षों से मुम्बई रहकर अपना इलाज रहा था। उसने वापिस आकर प्रशासनिक अधिकारियों को स्वयं प्रार्थना पत्र दिया है कि मैं जीवित हूँ मेरी जमीन बचाई जाए। एक ही सप्ताह में उत्तर प्रदेश की उद्घाटित दो-दो घटनाएं लेखपालों की कार्यविधि पर सवाल खड़े करती हैं। रँगे हाथ पकड़े जाने की घटनाएं होती ही रहती हैं। अत्यधिक चर्चित घटना 9 माह पूर्व की है यानी गत वर्ष 19 सितम्बर 2023 की है जब लखनऊ की सदर तहसील में एक लेखपाल अविनाश ओझा को घूस लेते हुए रँगे हाथ विजिलेंस टीम द्वारा पकड़ लिया गया था। आरोप था कि लेखपाल हैसियत प्रमाण पत्र बनवाने के एवज में 15 हजार रुपये की घूस माँग रहा था। पकड़े जाने के बाद भी वह लेखपाल विजिलेंस टीम के साथ जा नहीं रहा था। बहुत अधिक गिड़गिड़ा रहा था और गलती माफ करने की गुजारिश कर रहा था। तब मजबूरन पुलिस टीम को उसे घसीटते हुए ले जाना पड़ा था। घसीटते हुए ले जाते हुए फोटो और वीडियो खूब वायरल भी हुए थे। उत्तर प्रदेश में लेखपालों का वेतन लगभग 60 हजार रुपये प्रतिमाह है फिर भी आपदा में अवसर खोजने तथा बालू से तेल निकालने की आदत पड़ी हुई है।

लेखपाल या पटवारी, राजस्व विभाग में ग्राम स्तरीय अधिकारी होता है। इन्हें विभिन्न स्थानों पर अन्य नामों से भी जाना जाता है। राजस्थान में पटवारी तो उत्तर प्रदेश में लेखपाल कहा जाता है। पटवारी प्रणाली की शुरूआत सर्वप्रथम शेर शाह सूरी के शासनकाल के दौरान हुई और बाद में अकबर ने इस प्रणाली को बढ़ावा दिया। राजा टोडरमल जो अकबर के दरबार में भू-अभिलेख के मन्त्री थे, उन्होंने जमीन संबंधी कार्यो के सम्पादन के लिये पटवारी पद की स्थापना अपने राज्य में की थी। पटवारी शासन एवम निजी भूमियों के कागजात को सन्धारित करता है। ब्रिटिश राज में इसे सुदृढ़ कर जारी रखा गया। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान में पटवारी शब्द प्रचलित है। गुजरात-महाराष्ट्र में 1918 तक इन्हें कुलकर्णी कहा जाता था, जिसे खत्म कर तलाटी कहा जाने लगा। तमिलनाडु में पटवारी को कर्णम या अधिकारी कहा जाता है।

गांवों में गरीब किसान के लिए पटवारी ही ‘बड़ा साहब’ होता है। पंजाब में पटवारी को ‘पिंड दी मां’ (गांव की मां) भी कहा जाता है। राजस्थान में पहले पटवारियों को ‘हाकिम साहब कहा जाता था। उत्तर प्रदेश में पटवारी के पद को चौधरी चरण सिंह के जमाने में ही समाप्त कर दिया गया था और अब उन्हें लेखपाल कहा जाता है। उत्तराखंड में इन्हें राजस्व पुलिस कहा जाता है। विशेष गौरतलब यह है कि उत्तराखंड राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यों के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही सँभाल रहे हैं। तकनीकी युग में अब पटवार व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है। भारत सरकार ने 2005 में पटवारी इन्फॉर्मेशन सिस्टम (पीएटीआइएस) नामक सॉफ्टवेयर विकसित किया, ताकि जमीन का कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड रखा जा सके।

दरअसल ग्राम्य जीवन को सुरम्य सुन्दर और सुखद बनाने के लिए जिन चार पाँच विभागों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, वे हैं शिक्षा, स्वास्थ्य, राजस्व और पुलिस तथा ग्राम्य विकास व इसके अंतर्गत पंचायत विभाग। और यदि ग्राम स्तरीय कर्मचारियों की बात की जाए तो वे हैं शिक्षक, आँगनबाड़ी कार्यकत्री, स्वास्थ्य कर्मी, पंचायत सचिव, लेखपाल और पुलिस कर्मी। इनः सभी का दायित्व रहता है कि कार्यक्षेत्र के प्रत्येक नागरिक को विधि अनुरूप सेवाएं प्रदान की जाएं। किन्तु बढ़ती महत्वंक्षाओं के परिणाम स्वरूप कदाचार भी बढ़ता जा रहा है और भ्रष्टाचार भी।

प्रत्येक नागरिक के पास दो तरह की संपत्ति होती है एक चल संपत्ति और दूसरी अचल संपत्ति। इसी व्यक्तिगत एवं पंचायती अचल संपत्ति की रक्षा सुरक्षा के साथ अभिलेखीकरण कार्य हेतु लेखपाल की नियुक्ति राजस्व विभाग के अंतर्गत होती है। लेखपाल का मुख्य काम गाँव की जमीन के खाते और भूमि रिकॉर्ड को बनाए रखना है। उत्तर प्रदेश में लेखपाल म्यूटेशन यानी स्वामित्व हस्तांतरण और विभाजन से संबंधित संशोधनों की रिपोर्टिंग के लिए भी जिम्मेदार ह,, । वह खेतों का सर्वेक्षण करता है, फसल डेटा रिकॉर्ड करता है और खेतों और अन्य गांवों के आधिकारिक मानचित्रों को संशोधित करता है। इसके साथ ही अपने क्षेत्र के भूमि सम्बंधी विवाद का निपटारा करते हैं। भूमि का सीमांकन, म्यूटेशन, वरासत, हैसियत प्रमाण पत्र, जाति आय निवास प्रमाण पत्र संस्तुत करना, आपदा आदि जैसे अनेक कार्य करते हैं। अपने क्षेत्र का निरीक्षण का कार्य इन्ही का है। ये महत्वपूर्ण बिंदुओं और प्रार्थना पत्रों पर तहसीलदार को प्रतिवेदन प्रेषित करते हैं।

एंटीकरप्शन टीम अयोध्या के एक अधिकारी ने अनौपचारिक वार्ता के दौरान बताया कि रँगे हाथ पकड़े जाने वाले मामलों का औसत प्रति सप्ताह एक और दो का रहता है। इसप्रकार सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही अनुमानतः आँकड़ा देखा जाए तो प्रतिदिन एक से अधिक का औसत निकल रहा है। एंटीकरप्शन टीम के अतिरिक्त अतिरिक्त लगभग प्रत्येक विभाग में ऐसी इकाइयाँ गठित हैं और काम कर रही हैं। यदि सभी के आँकड़े एक साथ प्रस्तुत किये जा सकें तो निश्चित ही चौंकाने वाले होंगे।

राजनीति के लोग भले ही मुँह मोड़े रखें किन्तु सच्चाई यही है कि ग्रामीणों की आय का बड़ा हिस्सा शिक्षा स्वास्थ्य पुलिस और राजस्व मामलों में नाजायज खर्च होता है। यदि ये नाजायज खर्चे बच जाएं तो आमजन द्वारा यही पैसे उन्नति और विकास के कामों में अथवा किसी व्यवसाय में निवेश होंगे। किन्तु दुर्भाग्य है कि सरकार का कोई विभाग इस तरह की घूसखोरी और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने हेतु खानापूरी के अलावा कुछ नहीं करता है। कोई विभाग चाहे जब आम सर्वे कराकर दर्पण में चेहरा देख सकता है। एक कहावत प्रचलित है कि जगाया उन्हें जा सकता है जो वाकई सो रहे हों। जो सोने का नाटक किये हुए हैं उन्हें सामान्यतया जगाया नहीं जा सकता है। सवाल यह हैं कि अपने पैर में कुल्हाड़ी कौन मारे? अन्यथा चाहिए था कि आजादी के 75 साल पुरे होने पर सभी विभागों द्वारा व्यापक जनहित में आंतरिक सर्वे कराकर कड़े कदम उठाये जाएं ताकि दाग़ लगाने वाले लोग बाहर हो जाएं। यद्यपि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध अनिवार्य सेवा निवृत्ति का अभियान शुरू किया था। यह क्यों रुक गया ये तो वे ही जानें। किन्तु योगी की पारदर्शी व्यवस्था पर लेखपालों की कार्यशैली न सिर्फ दाग लगा रही है बल्कि जनता को गुणवत्ता परक सेवाएं प्रदान करने वाले उनके वायदे को पलीता लगाकर जनता के बीच छवि को धूमिल बना रहे हैं। स्वच्छ प्रशासन के हिमायती मुख्यमंत्री को ऐसे लेखपालों की काली करतूतों को संज्ञान में लाना चाहिए।

जो भी हो किन्तु एकबार ठीक से झाड़ू-बहारु की जरूरत है ताकि कूड़ा कर्कट हटाया जा सके। कदाचार व भ्रष्टाचार में लिप्त घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों को उनकी करतूतों के अनुरूप अंजाम तक पहुँचाकर, विभाग को दागदार होने से बचाया जा सकेगा और साथ ही उत्तर प्रदेश की जनता को गुणवत्तापूर्ण बेहतर सेवाएं प्राप्त कराई जा सकेंगी।

Don`t copy text!