कृष्ण सुदामा की मित्रता समाज को एक दिशा देती है! जितेंद्र नाथ पांडे
मामून अंसारी जिला ब्यूरो चीफ एसएम न्युज24 टाइम्स बाराबंकी
श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन भारी संख्या पुरुष व महिलाओं ने श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह पर उपहार दिया
हैदरगढ़ बाराबंकी अन्तर्गत ग्राम पंचायत बहुता धाम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक पंडित जी ने ईश्वर मनुष्य के मनोभावों को भली-भांति जानते हैं। जो लोग बिना किसी कामना के निस्वार्थ प्रेम करते हैं, उन्हें भगवान भौतिक संपत्ति धन-धान्य तथा अविचल भक्ति भी देते हैं। यह विचार बहुता धाम में डॉ योगेंद्र कुमार शुक्ल के आवास पर आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के छठे दिन व्यास डॉ जितेंद्र नाथ पांडे ने सुदामा चरित्र के कथा प्रसंग में व्यक्त किये। कथा व्यास डॉ पांडे ने आगे श्रोताओं को बताया की सुदामा एक अत्यंत निर्धन गृहस्थ ब्राह्मण थे। वे बड़े संतोषी, सदाचारी, तथा भगवान के परम भक्त थे। भगवान श्री कृष्ण उनके बाल सखा थे। एक ही गुरुकुल के सहपाठी होने के कारण मित्रता थी। विद्या अध्ययन के बाद सुदामा ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उनकी पत्नी बड़ी पतिव्रता और भक्तिमति थी किंतु निर्धनता इतनी थी कि प्रतिदिन खाने को अन्न भी नहीं मिलता था। एक दिन पत्नी ने पति से अपने मित्र श्री कृष्ण के पास जाने का प्रेम पूर्ण आग्रह किया। यद्यपि सुदामा सर्वथा निष्काम थे किंतु पत्नी की संतुष्टि के लिए श्री कृष्ण के पास जाना स्वीकार कर लिया।अतः शास्त्र का आदेश है कि भगवान के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। पत्नी ने पड़ोस से मांग कर कर मुट्ठी चिउरा भेंट के रूप में ले जाने के लिए पति को दिया। सुदामा जी प्रसन्नतापूर्वक भगवान द्वारिकाधीश के यहां पहुंच गये। कृष्ण भगवान ने सुदामा का बड़ा स्वागत – सत्कार किया उन्हें प्रेम पूर्वक गले से लगाकर उनका कुशल क्षेम पूछा । सुदामा जी को ऐसे वैभवशाली ऐश्वर्या संपन्न
मित्र को चार मुट्ठी तंदुल अर्थात चिउरा देने में संकोच हो रहा था। भगवान सुदामा के संकोच को समझ गए और उन्होंने स्वयं बड़े प्रेम से उसे छीन लिया और कहा कि पत्र -पुष्प जल,फल जो कुछ भी कोई मुझे श्रद्धा के साथ देता है मैं उसे सप्रेम स्वीकार करता हूं। चिउरा लेकर भगवान ने एक मुट्ठी खा लिया। दूसरी मुट्ठी लेना ही चाहते थे कि रुक्मणी जी ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा कि आपका एक मुट्ठी चिउरा ही भक्तिमान जीव को सर्व संपन्न बनाने के लिए पर्याप्त है। वास्तव में भगवान के सच्चे भक्त निस्वार्थ होते हैं वे तो भगवान से भगवान को ही मांगते हैं ।भगवान तो सर्वज्ञ हैं ।वे स्वयं जानते हैं कि उनके भक्त को कब क्या चाहिए। तद्नुसार वे स्वयं देते हैं। भगवान ने बिना कुछ प्रत्यक्ष दिए सुदामा जी को प्रेम पूर्वक विदा कर दिया। भगवान का दर्शन पूजन कभी निष्फल नहीं होता है। सुदामा जी ने अपने गांव आकर देखा कि अब उनकी कुटी सर्व सुविधा संपन्न वैभव संपन्न महल में बदल गई है। कृष्ण सुदामा का यह आख्यान संदेश देता है कि प्रत्येक परिस्थिति में धैर्य पूर्वक रहते हुए भगवान का चिंतन भजन करना चाहिए ।भगवान परीक्षा लेते हैं ।वह समय पर कृपा वर्षा करते हैं। भागवत कथा में मुख्य रूप से प्रेस क्लब अध्यक्ष राकेश पाठक , अधिवक्ता राजेंद्र कुमार बाजपेई शिवाकांत शुक्ला हरिश्चंद्र त्रिपाठी अंजनी मिश्र ,अजय मिश्रा ,राम किशोर रामरूप पांडे ,नीरज पति त्रिपाठी सहित भारी संख्या में पुरुष महिलाएं उपस्थित रहे। आयोजक राहुल शुक्ला ने आए लोगों का स्वागत किया
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