चुनाव आते ही कुछ चाटुकार लोगों हमेशा की तरह फिर चंद पैसों के लालच में बेच देते हैं अपना जमीर क्या ऐसे लोग दिला पाएंगे जनता से वोट जिसके दोनों हाथ में हमेशा दलाली व चाटुकारिता का लड्डू रहा हो हमेशा से ही दलबदलू नेताओं जैसे लोगों से होशियार रहने की जरूरत।
शादाब अली की खास रिपोर्ट
प्रधानी के चुनाव हैं सर पर लेकिन राज्य सरकार की गाइडलाइन फेल दिखाई दे रही है कहां है प्रधानों की आय व संपत्तियों की जांच
उन्नाव जिले में गांवों में प्रधान के चुनाव के लिए पोस्टरवार से लेकर घर के बाहर जमावड़े और दारू बाजू का दौर,सुरू पहले ही प्रधानों ने विकास के धन से ग्राम पंचायतों की तस्वीर नहीं बदली
प्रधानी के चुनाव के आहट के बीच गांव और कस्बों में एक बार फिर पंचायतों की चर्चा का दौर शुरू हो चुका है। गांव गांव और गली गली विकास को लेकर खलबली है। याेजनाआें की पड़ताल है तो युवाओं के बीच डिजिटल दुनिया में अलग ही सवाल है। शासन की ओर से प्रदत्त धन से ग्राम पंचायतों की तकदीर भले ही न बदली हो पर पांच वर्ष के लिये चुने गये सरपंच (प्रधान) की तकदीर जरूर बदल गई थी ग्राम सभा का चुनाव आते ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर गांवों में शुरू हो गया है।,गांवों की गलियां पोस्टरों से भरने जा रही है वहीं सोशल मीडिया पर चुनाव लडऩे की तीखी बहस देखी जा रही है। कोई तो इस तरह से चर्चा कर रहा है कि खुदा ने जैसे कोई देवता या कोई बड़ा वली उतार दिया हो लेकिन उनकी जमीनी हकीकत देखी जाए तो कुछ और ही निकल कर सामने आएगी आंकड़ों पर नजर दौड़ायी जाय तो प्रदेश शासन द्वारा 14 वें वित्त की दूसरी किस्त के रूप में समस्त पंचायतों को 6 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं तो राज्य सरकार ने अपने हिस्से से 2 हजार करोड़ रुपये जारी किए हैं।
इसके साथ ही स्वच्छ भारत मिशन की तरफ से 4.945 करोड़ रुपये जारी करने की सूचनाएं तैर रही हैं। मनरेगा के बजट में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इस धन को जोड़ दिया जाए तो औसतन एक व्यक्ति के लिए 1094 रुपये प्रति व्यक्ति सरकार ने विकास हेतु दिए हैं। इतना सबकुछ होने के बाद भी 21 वीं सदी में गांवों में न तो मंत्रियों व दबंग प्रधानों की दबंगई से समुचित विकास हुआ और नही मोदी जी की तरफ से दिए गए शौचालय व मनरेगा सभी काम चौपट सिर्फ खानापूर्ति आवासों में भी बड़ा घोटाला है न ही ग्राम पंचायत के पैसे से तकदीर बदल पा रही है। हां,इतना जरूर हो रहा है कि एक पंचवर्षीय योजना के लिये चुने जा रहे सरपंच की तकदीर व तस्वीर बदल जा रही है।
यही वजह है कि ब्लाक चिलकहर के ग्रामीण अंचलों में पंचायत चुनाव लडऩे के लिए युवाओं में होड़ मची है। जिनकी उम्र पढ़- लिखकर रोजगार तलाशने की है वह भी पंचायत स्तर का चुनाव लड़कर गांवों का विकास करने का सब्ज बाग दिखाते नजर आ रहे हैं। वहीं तकनीकी भी युवाओं के बीच प्रचार का बेहतर माध्यम बनकर उभरी है। ऐसे में वाटसएप और फेसबुक से भी गांव गिरांव की खबरें और विकास की हकीकत शहर तक गांवों के रास्ते आसानी से पहुंच रही है।