महिलाओं के सेना में स्थायी कमीशन के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता ‘मनमाना’ और ‘तर्कहीन’ : सुप्रीम कोर्ट
संपादक मोहिनी शर्मा एडवोकेट एसएम न्युज24 टाइम्स 8564852662
नई दिल्ली । देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को सेना में स्थायी कमीशन के लिए लगभग 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि इसके लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता ‘मनमाना’ और ‘तर्कहीन’ है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, ‘हमें यहां यह पहचानना चाहिए कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है।’ सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है। अदालत ने कहा, ‘मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है।’ महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए एसीआर मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित गौरव को नजरअंदाज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2020 को दिए अपने फैसले में सभी सेवारत शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन प्रदान करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह अपने पुरुष समकक्षों के साथ सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में स्थायी आयोग में महिलाओं को भी अनुदान दे। जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पहले मामले की अंतिम सुनवाई 24 फरवरी के लिए तय की थी। इससे पहले 24 फरवरी की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वह व्यक्तिगत शिकायतों के आधार पर केंद्र सरकार को पिछले साल दिए अपने उस फैसले में बदलाव नहीं कर सकता, जिसमें सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा था, ‘हम ऐसे विविध आवेदनों के आधार पर हमारे फैसले के साथ जरा भी बदलाव नहीं करेंगे, और वो भी लगभग एक साल बाद। हम व्यक्तिगत मामलों को देखते हुए अपने निर्णय में संशोधन नहीं कर सकते। न्यायिक अनुशासन नाम की भी कोई चीज होती है।
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