क्यों है अरब और इस्लामी जगत के मूर्खों के दौर का इंतेज़ार? क्या हुआ था जब बैरुत में एक ही हमले में मरे थे 299 अमरीकी व फ्रांसीसी सैनिक?  अब्दुलबारी अतवान की खरी खोटी… आंखें खोलने वाला लेख

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अरब जगत के प्रसिद्ध पत्रकार अब्दुलबारी अतवान ने मूर्ख की नयी परिभाषा बयान करते हुए ट्रम्प की कार्यवाहियों और कदमों का जायज़ा लिया है और रोचक अंदाज़ में इस्लामी जगत की स्थिति पर प्रकाश डाला है।
अरब जगत के समाचारपत्र और टीवी चैनल ऐसे लेखों और कार्यक्रमों से भरे पड़े हैं जिनमें अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भुगोल और इतिहास के बारे में कम जानकारी का मज़ाक उड़ाया जाता है मिसाल के तौर पर इस बात का कि ट्रम्प को यह भी नहीं मालूम कि चीन  और भारत के बीच संयुक्त सीमा है । इसी तरह ट्रम्प को यह भी नहीं पता कि ” पर्ल हार्बर” का क्या मतलब है कि जहां हमले की वजह से दुनिया में पहली बार जापान के खिलाफ परमाणु बम का प्रयोग हुआ था, ट्रम्प को लगता है कि पर्ल हार्बर  सैर सपाटे की एक जगह है लेकिन ट्रम्प का मज़ाक़ उड़ाने वाले अधिकांश लोगों और विशेषकर अरबों को यह नहीं पता कि ट्रम्प को यह बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि अरबों से रक़म कैसे वसूल की जाए या यह कि बैतुलमुक़द्दस कहां है और उसे कैसे इस्राईल की राजधानी बनाना है और इसी तरह ट्रम्प को यह भी मालूम होता है कि जनरल क़ासिम सुलैमानी कहां हैं और वह उनकी हत्या करा देते हैं।

: ट्रम्प जिस तरह से ब्लैकमेल करते हैं और गुंडा टैक्स वसूल करते हैं उस पर अंकुश लगाने की ज़रूरत है। 23 अक्तूबर सन 1986 में जब लेबनान के प्रतिरोध संगठन ने अमरीकी और फ्रांसीसी सैन्य छावनी पर विस्फोटकों से भरे दो ट्रकों से हमला किया था और जिसमें 299 अमरीकी व फ्रांसीसी सैनिक मारे गये थे तो उस समय इस संगठन को अच्छी तरह से मालूम था कि अमरीका के पास मिसाइल, विमानवाहक युद्ध पोत और परमाणु बम हैं लेकिन अमरीका के यह हथियार, प्रतिरोध संगठन को अमरीका से बदला लेने से नहीं रोक पाए। जब हम विशेष रूप से इस घटना का उल्लेख करते हैं तो यह इस लिए होता है कि पहले तो हम अमरीका को और फिर अरबों और इस्लाम के सपूतों को याद दिलाना चाहते हैं कि अगर साम्राज्यवादी ताक़तों का अत्याचार और अपमान बढ़ गया तो फिर 40 करोड़ अरबों और डेढ़ अरब मुसलमानों के बीच बहुत से ऐसे लोग सामने आएंगे जो अलग अंदाज़ में जवाब देना पसंद करेंगे, हम हिंसा का समर्थन नहीं करते बल्कि हम, सम्मान के साथ शांति का समर्थन करते हैं न कि उस शांति का जो अपमान और ब्लैकमेल होने के बदले मिले।
23 अक्तूबर सन 1986 में बैरुत में होने वाले धमाकों के बाद लेबनान की भूमि पर एक भी अमरीकी या एक भी फ्रांसीसी सैनिक रुका नहीं था, सब सिर पर पैर रख कर भाग खड़े हुए और फिर कभी लौट कर न आए तो क्या ट्रम्प और उनके साथी अतीत दोहराना चाहते हैं?
    अब अगर ट्रम्प मूर्खतापूर्ण साहस दिखाते हैं तो यह जान लें कि दूसरी जगहों में भी उनकी तरह साहस दिखाने वाले ” मूर्ख” मौजूद हैं बल्कि कुछ तो उनसे भी अधिक खतरनाक हैं। क्या कुछ और खुल कर मैं बताऊं?
          अरब और इस्लामी जगत, अमरीकी ब्लैकमेलिंग और अपमान के सामने लाचार नज़र आता है लेकिन अब उस पर अंकुश लगाना ज़रूरी है आखिर क्या वजह है कि 56 इस्लामी देशों में एक देश भी उत्तरी कोरिया की तरह नहीं है और न ही कोई उत्तरी कोरिया के नेता की तरह है जो ट्रम्प को चैलेंज कर सके और उन्हें लगाम लगा सके?

इस्लामी जगत में ट्रम्प जैसे ” मूर्ख ” नेताओं के अभाव की वजह से ही ट्रम्प अरबों का जम कर अपमान कर रहे हैं। ट्रम्प युरोप को भी अपने पीछे चलने पर मजबूर कर रहे हैं और युरोप के तीनों बड़े देश, अमरीका के पिछलग्गू बन चुके हैं और इसी लिए अब वह ईरान पर आरोप लगाते हुए सुरक्षा परिषद में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
    ट्रम्प पर लगाम लगाने के लिए इस्लामी जगत में एकजुटता की ज़रूरत है और फिर एकजुट इस्लामी जगत का नेतृत्व ट्रम्प जैसे किसी ” मूर्ख” के हाथों में होना चाहिए और अगर ऐसा हो गया तो फिर आप सब देखेंगे कि ट्रम्प और उनके जैसे दूसरे लोग कैसे दुम दबाकर भागते हैं।
    आप हमें जो भी समझें, जो जी में आए कहें, आप यही समझें कि हमें शक्ति के समीकरण का पता नहीं, देशों की ताक़त के बारे में हमें कुछ नहीं मालूम कोई बात नहीं हमें तो बस यह मालूम है कि उत्तरी कोरिया के नेता इस प्रकार की बातों पर ध्यान नहीं देते और वियतनाम के लोगों ने जब अमरीका से लोहा लिया था और अमरीका को धूल चटायी थी तो उनके पास न परमाणु बम नहीं था और अफगानियों ने जब सोवियत संघ को हराया था तो उस समय वह एफ- 16 या एफ-15 युद्धक विमानों पर नहीं बैठे थे और जब तालिबान के सामने अमरीका शांति के लिए गिड़गिड़ाया तो उस समय तक तालिबान को टैंक चलाना भी नहीं आता था और वह टैंक के ऊपर बैठ कर उसे गाड़ी की तरह इस्तेमाल कर रहे थे।
        हमारी संपत्ति लूटी जा रही है, हमारे लोग भूख से तड़प रहे हैं, हमारे शासक, भ्रष्ट हैं लेकिन यह सब कुछ जारी रहने वाला नहीं है, और अरब और मुसलमानों के ” मूर्खों” का समय आने वाला है।Q.A, साभार, रायुल यौम, अब्दुलबारी अतवान

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