दायरये ईमान में आना काफ़ी नहीं तक़वा इख्तेयार कर सच्चों के साथ होना भी ज़रूरी है इस्लाम दुनियां छोड़ने (सन्यास लेने) का हुक्म नहीं देता , बुराई छोड़ने का हुक्म देता है
Related Posts
बाराबंकी । इस्लाम दुनियां छोड़ने (सन्यास लेने) का हुक्म नहीं देता , बुराई छोड़ने का हुक्म देता है।रूहे तक़वा मोहब्बते अहलेबैत है। यह बात मौलाना गुलाम अस्करी हाल में ईसाले सवाब की मजलिस मज्लिसे तरहीम मरहूम शब्बीर मेहदी,नुजहत फातिमा , तहसीन फतिमा को खिताब करते हुये मौलाना इब्ने अब्बास साहब ने कही। उन्होने यह भी कहा कि दायरये ईमान में आना काफ़ी नहीं तक़वा इख्तेयार कर सच्चों के साथ होना भी ज़रूरी है । तक़्वे का मतलब वाजिबात पर अमल करना और मोहर्रमात से परहेज करना है।जब तक किर्दार में जौहरे तक़वा ना हो ईमान मोकम्मल नहीं हो सकता ।आखिर में कर्बला वालों के मसायब पेश किया जिसे सुनकर मोम्नीन रो पड़े । मजलिस से पहले हाजी सरवर अली कर्बलाई ने अपना कलाम पेश करते हुये पढ़ा – मिल नहीं सकती है सरवर हश्र तक उसको नजात , जिसने तेरा दिल ज़रा सा भी दुखाया है बतूल । हसन मेहदी एडवोकेट ने पढ़ा – अजब थी अली अकबर की शान क्या कहना,वो यादगारे सहर की अज़ान क्या कहना ।मो0 ताहा ने पढ़ा – मौत जब साहिबे किर्दार से टकराती है,वो तो मरता नहीं खुद मौत ही मर जाती है ।इसके अलावा मोहम्मद , मो0रज़ा , गाज़ी इमाम , हसन मसीहा ,अरबाब शाहा ,केयान अब्बास ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया।मजलिस का आगाज तिलावते कलामे पाक्षे कयान अब्बास ने किया बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)